Saturday, August 30, 2008

किसी के पास वक्त नही

हर खुशी है लोगों के दामन में पर एक हँसी के लिए वक्त नही
दिन रात दौड़ती दुनिया में जिंदगी के लिए ही वक्त नही
माँ की लोरी का एहसास तो है पर माँ को माँ कहने का
वक्त नही सारे रिश्तों को तो हम मार चुके अब उन्हें
दफ़नाने का भी वक्त नही
सारे नाम मोबाइल में हैं पर दोस्ती के लिए वक्त नही
गैरों की क्या बात करें जब अपनों के लिए ही वक्त नही
आंखों में है नींद बड़ी पर सोने का वक्त नही
दिल है गमो से भरा हुआ पर रोने का भी वक्त नही
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड की थकने का भी वक्त नही
पराये एहसासों की क्या कद्र करें
जब अपने सपनो के लिए ही वक्त नही
तू ही बता ऐ जिन्दगीस जिंदगी का क्या होगा की हर पल
मरने वालों को जीने के लिए भी वक्त नही

Friday, August 29, 2008

चतुर समझने वाले पत्रकार ...

फिलहाल अभी मै बता रहा हू की मीडिया में ज्यादा अक्ल लगाने वालें पत्रकार के बारे में ................
बड़े बड़े दावे के साथ इंडस्ट्री में इंटर करते है लेकिन सारे दावे उनके खोखले साबित हो जाते हैं ..................
बॉस के साथ सुर में सुर मिलाते हैं मुझे याद आता है दूरदर्शन का वो विज्ञापन की मिले सुर मेरा तुम्हारा समझ गए होंगे आप...........................
लोग अपनी जिम्मेदारी को भूल कर दुसरो की जिम्मेदारी याद दिलाते है .....................
मैं आपको कुछ पात्र के बारे में बताता हू जिनको मैं कुछ दिनों से जानता हू..................रहने दीजिये समझ गए होंगे आप ..............सभी जगह ऐसा होता है ..........................................