Saturday, August 30, 2008

किसी के पास वक्त नही

हर खुशी है लोगों के दामन में पर एक हँसी के लिए वक्त नही
दिन रात दौड़ती दुनिया में जिंदगी के लिए ही वक्त नही
माँ की लोरी का एहसास तो है पर माँ को माँ कहने का
वक्त नही सारे रिश्तों को तो हम मार चुके अब उन्हें
दफ़नाने का भी वक्त नही
सारे नाम मोबाइल में हैं पर दोस्ती के लिए वक्त नही
गैरों की क्या बात करें जब अपनों के लिए ही वक्त नही
आंखों में है नींद बड़ी पर सोने का वक्त नही
दिल है गमो से भरा हुआ पर रोने का भी वक्त नही
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड की थकने का भी वक्त नही
पराये एहसासों की क्या कद्र करें
जब अपने सपनो के लिए ही वक्त नही
तू ही बता ऐ जिन्दगीस जिंदगी का क्या होगा की हर पल
मरने वालों को जीने के लिए भी वक्त नही

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